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Saturday 21 February 2015

सुला चुकी थी ये दुनिया थपक थपक के मुझे - राहत इन्दौरी

सुला चुकी थी ये दुनिया थपक थपक के मुझे

सुला चुकी थी ये दुनिया थपक थपक के मुझे
जगा दिया तेरी पाज़ेब ने खनक के मुझे

कोई बताये के मैं इसका क्या इलाज करूँ
परेशां करता है ये दिल धड़क धड़क के मुझे

ताल्लुकात में कैसे दरार पड़ती है
दिखा दिया किसी कमज़र्फ ने छलक के मुझे

हमें खुद अपने सितारे तलाशने होंगे
ये एक जुगनू ने समझा दिया चमक के मुझे

बहुत सी नज़रें हमारी तरफ हैं महफ़िल में

इशारा कर दिया उसने ज़रा सरक के मुझे


मैं देर रात गए जब भी घर पहुँचता हूँ 
वो देखती है बहुत छान के फटक के मुझे 


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