WelCome

Saturday 21 February 2015

इश्क़ में जीत के आने के लिये काफी हूँ

इश्क़ में जीत के आने के लिये काफी हूँ



इश्क़ में जीत के आने के लिये काफी हूँ
मैं अकेला ही ज़माने के लिये काफी हूँ


हर हकीकत को मेरी ख्वाब समझने वाले
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिये काफी हूँ


ये अलग बात के अब सुख चुका हूँ फिर भी
धूप की प्यास बुझाने के लिये काफी हूँ

बस किसी तरह मेरी नींद का ये जाल कटे
जाग जाऊँ तो जगाने के लिये काफी हूँ


जाने किस भूल भुलैय्या में हूँ खुद भी लेकिन
मैं तुझे राह पे लाने के लिये काफी हूँ


डर यही है के मुझे नींद ना आ जाये कहीं
मैं तेरे ख्वाब सजाने के लिये काफी हूँ


ज़िंदगी.... ढूंडती फिरती है सहारा किसका ?
मैं तेरा बोझ उठाने के लिये काफी हूँ


मेरे दामन में हैं सौ चाक मगर ए दुनिया
मैं तेरे एब छुपाने के लिये काफी हूँ


एक अखबार हूँ औकात ही क्या मेरी मगर
शहर में आग लगाने के लिये काफी हूँ


मेरे बच्चो.... मुझे दिल खोल के तुम खर्च करो
मैं अकेला ही कमाने के लिये काफी हूँ

No comments:

Post a Comment

adhitzads

Most

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Part Time Job

BidVertiser

Popular Posts

Join And get AD For Your Site